मंत्र, मोक्ष, प्रारब्ध, संचित कर्म और साक्षी भाव
मंत्र जप का मोक्ष से सीधा संबंध नहीं है कि इस या उस के मंत्र जप से मोक्ष मिलेगा। सिद्ध गुरु से प्राप्त कोई भी, किसी भी देवी देवता का मंत्र ध्यान साधना में सहायक हो सकता है । मंत्र जप चित्त शुद्धि व एकाग्रता व ध्यान में सहायक होते हैं। ध्यान में उतर जाने पर मंत्र का कार्य लगभग पूरा हो जाता है। मंत्र ध्यान से आगे नहीं जाते क्योंकि कि परम सत्य तो नाम और रूप से परे है इसलिए मन के साथ साथ बुद्धि और समस्त इन्द्रियाँ उसे नहीं जान सकती… मोक्ष मिलना साधक की प्रकृति व इछाओ निर्भर है। यह बात समझना बहुत महत्वपूर्ण है की केवल मंत्र जप पर्याप्त नहीं साधक को अपनी रजस तमस वृत्ति से परे और इच्छा आकांक्षा से परे भी जाना होता है। मंत्र जप व तपस्या तो राक्षस भी करते थे पर वे अपनी तामसिक वॄत्ति के कारण अत्याचारी शक्ति ही मंत्र जप के बदले में पाते थे । राजा भरत ने तो राजपाट त्याग कर जंगल की राह ली व चित्तवृत्ति भी शुद्ध होगई पर एक मृग शावक की देखभाल में चित्त रम जाने से एक जन्म और लेना पड़ा -मृग के रूप में ही और जब तक पूर...