संदेश

अक्तूबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मंत्र, मोक्ष, प्रारब्ध, संचित कर्म और साक्षी भाव

मंत्र जप का मोक्ष से सीधा संबंध नहीं है कि इस या उस के मंत्र जप से मोक्ष मिलेगा।  सिद्ध गुरु से प्राप्त कोई भी, किसी भी देवी देवता का मंत्र ध्यान साधना में सहायक हो सकता है ।  मंत्र जप चित्त शुद्धि व एकाग्रता व ध्यान में सहायक होते हैं। ध्यान में उतर जाने पर मंत्र का कार्य लगभग पूरा हो जाता है।  मंत्र ध्यान से आगे नहीं जाते क्योंकि कि परम सत्य तो नाम और रूप से परे है इसलिए  मन के साथ साथ बुद्धि और समस्त इन्द्रियाँ उसे नहीं जान सकती… मोक्ष मिलना साधक की प्रकृति व इछाओ निर्भर है।  यह बात समझना बहुत महत्वपूर्ण है की   केवल  मंत्र जप पर्याप्त नहीं साधक को अपनी रजस तमस वृत्ति से परे और इच्छा  आकांक्षा से परे भी जाना होता है।  मंत्र  जप व तपस्या तो राक्षस भी करते थे पर वे अपनी तामसिक वॄत्ति के कारण अत्याचारी शक्ति ही  मंत्र  जप के बदले में पाते थे । राजा भरत ने तो राजपाट त्याग कर जंगल की राह ली व चित्तवृत्ति भी शुद्ध होगई पर एक मृग शावक की देखभाल में चित्त रम जाने से एक जन्म और लेना पड़ा -मृग के रूप में ही और  जब तक पूर...

स्वीकारभाव

जहा आप पहुंच जाते हो, मन वहा से हट जाता है, मन आगे दौड़ने लगता है, कही और जाता है, मन सदा आपसे आगे दौड़ता रहता है, आप जहा हो वहा कभी नहीं होता  । यदि आप लोकप्रिय नहीं हैं, तो आप प्रसिद्धि चाहते हैं।  यदि आप लोकप्रिय हैं, तो आप गोपनीयता चाहते हैं।  यदि आप गरीब हैं तो आपको पैसा चाहिए।  यदि आप अमीर हैं तो आपको एहसास होता है कि अभी भी आपके जीवन में खुशियों की कमी है। आप बस एक सादा जीवन जीना चाहते हैं।  यदि आप बुद्धिमान हैं तो जीवन तनावपूर्ण हो जाता है क्योंकि आप किसी भी चीज को नजरअंदाज नहीं कर पाते हैं।  यदि आप अनाड़ी हैं, तो आप अपने अज्ञानी व्यवहार के कारण गलतियाँ करते हैं।  यदि आप अकेले हैं, तो आप एक रिश्ता चाहते हैं।  यदि आप रिश्ते में हैं, तो आप कुछ जगह और स्वतंत्रता चाहते हैं। यदि आप एक शक्तिशाली व्यक्ति नहीं हैं, तो आप महसूस करते हैं कि लोग आप पर हावी हैं।  यदि आप एक शक्तिशाली व्यक्ति हैं, तो आपको एहसास होता है कि आपको सभी जिम्मेदारियों को संभालना है। और यह पहचानना मुश्किल है कि कौन वास्तव में आपसे प्यार करता है और कौन नाटक कर रहा है। जीवन कभ...

सुकून

अभी कुछ दिनो से घर मे बहुत ज़्यादा उदास माहौल था। टेंशन ही टेंशन। टेंशन भी ऐसी कि ना भूख लगे ना मन लगे। बस चमत्कार की उम्मीद में। एक समय आता है जब मन नहीं लगता, डिप्रेशन जैसी भावना आ जाती है। और जिस बात की टेंशन होती है, वो बात कहीं ना कहीं मन स्वीकार कर ही चुका होता है। लेकिन कहते है ना कि हर चीज़ की एक हद होती है, इसी तरह शायद टेंशन की भी यही हद होती है। जब ऐसी परिस्थिति हो, तब ख़ुश कैसे रहे? ख़ुश रहना तो दूर, ख़ुश रहने की सोचें भी कैसे? ख़ूब समझाया मन को, कि क्या फ़ायदा हो रहा है इतनी परेशानी लेने का? उल्टा, अपनी ही मानसिक व शारिरिक स्थिति ख़राब हो रही है। फ़िर यूट्यूब देखने बैठे, कोई लाभ नहीं। हँसी-मज़ाक की फ़िल्म देखी, कोई लाभ नहीं। और भी बहुत सारी चीजें, जिनसे ख़ुशी मिल सकती थी, लेकिन कोई लाभ नहीं। फ़िर फ़ोन किताबें और टीवी का रिमोट एक तरफ़ रखा और खाली बैठें। मतलब, एकदम खाली। और दिमाग से बोला, "अक्षता तू सोच, तुझे क्या सोचना है और कितना सोचना है। सोच, कि ये हुआ तो वो होगा और वो हुआ तो ये होगा। कोई तुझे नहीं रोकने वाला।" दिमाग़ ने सोचना शुरू किया। सोचते-सोचते ख़ुद ही बोर हो गया और सोलुशन...