सहज समाधी

     

सहज समाधी 

द्वैतावस्था ही अंतिम अवस्था है, यही सभी अवस्थाओं की पृष्ठभूमि है जिसे सहज समाधि भी कहते हैं, इसमें कोई भेद नहीं है, यहा कोई वृत्ति आए चाहे जाए, कोई भी अनुभव आए-जाए, यहां तक कि अनुभवकर्ता की भी कोई चिंता नहीं है बस होना मात्र है। 

    अस्तित्व बहुत सरल है जब की उसके मिथ्या रूप बहुत जटिल है और अनुभवकर्ता को जानना बुद्धि के परे हैं। जो केवल है उसको जानने के लिए बुद्धि की आवश्यकता नहीं है, वह स्वयंसिद्ध है। वह ना ऐसा है, ना वैसा है जो सबसे सरल है, जो सबसे सहज है 'वह मैं हुँ' और यह अद्वैतावस्था मेरी ही अवस्था है जो कभी जाती नही, जो कभी टूट नहीं सकती, कितनी भी वृत्तियां आए, कितनी भी अवस्थाएं आए जाए जीव रहे ना रहे अस्तित्व तो रहेगा और हमेशा इस अनुभव क्रिया में रहेगा और यही सहज समाधि है।

    यह अज्ञान है कि सहज समाधि की अवस्था में आया जा सकता है क्योंकि यह अवस्था पहले से है सब कुछ पहले से ही एक है इसको कुछ जोड़ तोड़ के बनाया नहीं जा सकता, आपको केवल आपका अज्ञान नष्ट करना पड़ेगा की अनुभव और अनुभवकर्ता में भेद है या कुछ करने से, किसी कर्म से अद्वैतावस्था आ जाएगी लेकिन ऐसा नहीं है वह तो पहले से ही है, कुछ करने से नहीं आएगी उल्टा कुछ करने से तो भुला दी जाएगी। यहां पर कर्महीनता यानि स्वीकार में आ जाना के जो अभी है वही अद्वैत है, अद्वैतावस्था है, सब कुछ पहले से ही एक है। 

    यह सहज समाधि कुछ करने से नहीं आएगी, कुछ जानने से नहीं आएगी, किसी अनुभव से भी नहीं आएगी क्योंकि यह पहले से ही है। जो पहले से ही है उसे लाया नहीं जा सकता, अस्तित्व को कहीं से बनाया नहीं जा सकता। यह तो गुम भी नहीं गया है बस अज्ञान में छुप गया है, माया में रम गया है जब यह सत्य देख लिया जाता है तो यह भी देख लिया जाता है की सब कुछ पहले से ही है जैसा होना चाहिए।


धन्यवाद 🙏

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