ज्ञानमार्ग में चलते चलते रुक जाने का कारण, निवारण और विकल्प

नमस्ते,

जिस व्यक्ति को ज्ञान नहीं हुआ केवल सुन लिया है वही इस मार्ग में चलते चलते रुक जाएगा क्योंकि बुद्धि में विकार है या कोई मनोविकार आगए हैं तो वह व्यक्ति जो भी ज्ञान दिया है वह भूलाकर सामान्य हो जाता है, वापस तुच्छ हो जाता है, वापस बेड़ियों में पड़ जाता है और फिर से प्रकृति ने जो विकासक्रम उसके लिए निर्धारित किया है उसके अनुसार चलता है। अभी उसको बहुत कुछ झेलना है, अभी उसको बहुत कुछ भोगना है और उसके बाद वह वापस आएगा ज्ञानमार्ग पर क्योंकि ज्ञान बीज़ पड़ा है तो चिंता की बात नहीं लेकिन यह बहुत कम होता है।

बहुत से लोग ज्ञानमार्ग पर चलकर भी उनमें परिवर्तन नहीं आते और यह सब आवश्यक ही नहीं है ज्ञान होना आवश्यक है लेकिन यह परिवर्तन नहीं हुआ है तो वापस अंधकार में जा सकते हैं। ऐसा व्यक्ति स्वयं को शरीर मान के सारा जीवन व्यतीत कर सकता हैं कोई बुराई नहीं है, अज्ञान में जी सकता हैं जैसे बाकी लोग जी रहे हैं बिना जाने 'मैं कौन हूं?', बिना इस मार्ग का लाभ लिए गुरु को त्याग सकते हैं, शास्त्रों को फेंक सकते हैं इसमें कोई बुराई नहीं है। 

बहुत से लोग अज्ञान में जी रहे हैं और सुखी भी दिखते हैं तो अज्ञान में जीवन जीने में कोई बुराई नहीं है लेकिन ज्ञानी को सारे संसार की दौलत दे दी जाए तो भी उसे ठुकरा के वह ज्ञान ही चुनेगा, कौन मूर्ख होगा जो पिंजरे में, जेल में वापस जाना चाहेगा भले ही वह जेल सोने की बनी हो, भले ही वहां पर सारी सुख सुविधाएं हो पर बंधन में कौन जाना चाहेगा, अंधेरे में कौन जाना चाहेगा जब इतना बड़ा प्रकाश, इतनी बड़ी स्वतंत्रता, इतनी बड़ी मुक्ति, परम मुक्ति मिल चुकी है तो कोई अज्ञानी ही वापस जाएगा।

सभी ज्ञान में से आत्मज्ञान सबसे बड़ा है, मूलभूत है। आत्मज्ञान के आगे ज्ञान ही नहीं होता, यही सबसे महत्वपूर्ण है। आश्चर्यजनक बात यह है कि सबसे सरल भी आत्मज्ञान ही है, पंद्रह-बीस मिनट में नेति नेति द्वारा हो सकता है, कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति पंद्रह-बीस मिनट मैं जान सकता है और यदि उसकी भूमिका बांधी जाए, उसकी पृष्ठभूमि तैयार कर दी जाए सभी परिभाषाओ को परिभाषित करके, स्पष्ट करके बहुत ही सरल, तार्किक, शुद्ध, स्वयंसिद्ध है इसलिए अब कोई शंका नहीं बचती यदि शंका है तो ज्ञान नहीं हुआ यह बात तय है। बाकी मार्ग आप देखेंगे बहुत कठिन है कई वर्ष या कई जन्म भी लग जाते हैं सफलता प्राप्त करने के लिए लेकिन ज्ञानमार्ग कुछ मिनटों का काम है घंटों का काम है।

कुछ लोग यह चाहते कि चलो ज्ञानमार्ग तो हो गया अब दूसरे जो और अच्छे मार्ग है उनको भी आजमाया जाए उनका भी अनुभव लिया जाए लेकिन जैसे हीं दूसरे मार्ग पर जाएंगे तो आप देखेंगे कि वह पूरी तरह से नीरस और बेकार है। इस सृष्टि में कौन सा भी मार्ग ले लीजिये ज्ञानमार्ग के सामने सब कुछ नीरस है और उससे कोई प्रगति नहीं होगी, उससे कोई अधिक ज्ञान नहीं मिलता जो ज्ञानमार्ग में मिलता है वह अंतिम है। आत्मज्ञान मूल है, इससे बड़ा, इससे अच्छा क्या मिलेगा? दूसरे मार्गो से ज्ञान मार्ग की तरह ही विकास होता है लेकिन ज्ञानमार्ग से यदि व्यक्ति दूसरे मार्ग पर जाता है तो वह पतन है वह विकास नहीं है । बाकी मार्ग ज्ञान मार्ग में आने का साधन मात्र है। 

यदि कोई मार्ग नहीं है सबसे पहले ज्ञानमार्ग आजमाना चाहिए।अगर यहां सफल हो गए तो कोई मार्ग आवश्यक नहीं है। खोज का अंत हो जाता है।

ज्ञान मार्ग में विफल हो गए तो दूसरे मार्गो के तरफ देखना चाहिए। जिसमे योग सर्वोपरि है।

योग में भी विफल हो जाए तो शक्ति का मार्ग अपनाना चाहिए।शक्ति का मार्ग प्रकृति पर आधारित है।

शक्ति के मार्ग में विफल हो गए तो कर्म का मार्ग चुनना चाहिए। कर्मों की शुद्धि होने पर योग या शक्ति का मार्ग संभव हो जाता है।

कर्म का मार्ग भी संभव ना हो तो भक्ति मार्ग है जो प्रेम और समर्पण का मार्ग है।

निचले मार्गो में से तंत्रमार्ग भी काफी लोकप्रिय मार्ग है जो वासनापूर्ति का मार्ग है।

तंत्रमार्ग में भी सफल ना हो पाए तो साधारण व्यक्ति आत्मसुधार करता है यहां पर पशुवृत्ति का त्याग होता है।

आत्मसुधार मैं भी विफल हो गए तो व्यक्ति को सांसारिक जीवन अपनाना चाहिए।

धन्यवाद 🙏🏻

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